।। मंत्रयोगाश्रम ।।
(४१-दिवसीय मंत्रयोग- समस्त समस्याओं का मांत्रिक समाधान)
।। मन्नात् त्रायते इति मंत्र: ।।
वह शक्ति जो मन को बंधन से मुक्त करे वही मंत्र है।
।। मंत्र ।।
ध्वनि का विद्युत रूपांतरण = तन + मन + कारण - तीनों शरीरों का वैदिक-वैज्ञानिक परिमार्जन।
।। ४१-दिवसीय मंत्रयोग ।।
।।("आम" से "खास" की ओर)।।
01.07.2023 कुल शिष्य मंडल 320379+
417+
शिष्य (इष्ट-सिद्धि)
2703+
शिष्य (मन्त्र-दीक्षा)
69+
शिष्य (क्रम-दीक्षा)
56108+
शिष्य (मन्त्र-पुरश्चरण)
84021+
शिष्य (मन्त्रोपचार)
177061+
शिष्य (मन्त्र-योग)
मंत्रयोग क्या है।
मन्त्र एक वैज्ञानिक रूप से संहिताबद्ध भाषा है, जिसके समयबद्ध व नियत संख्या में जपने से साधक सभी कर्म-बन्धनों का क्षय करते हुए मुक्ति को प्राप्त हो, वह प्रक्रिया ही "मंत्रयोग" कहलाती है।
कौलाचार्य स्वामी सुमनानन्द नाथ प्रवर्तित "४१-दिवसीय मन्त्रयोगाचार" के अनिवार्य पञ्च-स्तरीय प्रामाणिक नवाचार
- परीक्षण।
- भैरव दीप-बलि।
- सन्निधान त्राटक-पूर्वक ४१-दिन उपदेशित मंत्रजप।
- शक्तिपात् (८ से १३ दिन) द्वारा कुंडलिनी जागरण।
- मंत्रपुरश्चरण के पञ्चाङ्ग (अर्पण-तर्पण-मार्जन-बलि-हवन) यज्ञानुष्ठान द्वारा कार्य-सिद्धि/ मन्त्र-सिद्धि/ इष्ट-सिद्धि।
प्रमुख सेवायें
तन्त्रोपचार : मन्नत विधान, समस्त कर्मकाण्ड, ग्रह-पितृ-प्रेत-वास्तु दोषादि निवारण। ताबीज, कवच, झाड़ा उतारा।
मन्त्रोपचार : "४१-दिवसीय मंत्रयोग" के माध्यम से सभी प्रकार के कष्टों (दैविक, दैहिक व भौतिक), समस्याओं का समयबद्ध एवं प्रामाणिक समाधान व कार्य-सिद्धि।
यन्त्रोपचार : परमन्त्र - परयन्त्र - परतन्त्र उत्कीलन। गृह व्यवसाय का अभिमन्त्रण, अभिकीलन व परिमार्जन।
मन्त्रयोगाचार : मंत्रदीक्षा द्वारा मन्त्र-सिद्धि तथा इष्ट-सिद्धि। मंत्रपुरश्चरण के अर्पण-तर्पण-मार्जन-बलि व हवन - पञ्चाङ्ग सहित आगमोक्त यज्ञानुष्ठान।
वृक्षोपचार : वृक्षायुर्वेद, रोगोपचार, वात-पित्त-कफ-शमन हेतु विशिष्ट देवारण्य।
मन्त्रयोगारण्य : मंत्रयोग साधना हेतु विशिष्ट मन्त्रयोगारण्य। वृक्षासन, दिव्यास्त्र साधना व वनस्पति रसायन तन्त्रम्।
गौ-कृषि वाणिज्यम्
वैदिक फार्म - स्टे
गुरु के बारे में
स्वामी सुमनानन्द नाथ
(डॉ. सुमन कुमार दास)
डॉ. सुमन कुमार दास एक असाधारण व्यक्ति हैं, जिन्होंने एक उल्लेखनीय पथ को पार किया है, एक अत्यधिक सफल व्यवसाय टाइकून के रूप में शुरुआत की और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित एग्रीप्रेन्योर के रूप में परिवर्तित हुए। अंततः, उन्होंने सनातन धर्म और वेदों के गहन ज्ञान और ज्ञान के साथ एक गुरु की भूमिका निभाई।
ललिता दिव्या आश्रम
।। चारों पुरुषार्थों की सिद्धि का समयबद्ध सोपान ।
मन्त्रजाप-त्राटक-दीपबलि से जन-जन का कल्याण ।।
तंत्रागम के सातों लक्षण - सृष्टि, प्रत्यय, देवार्चन, सर्वसाधन, पुरश्चरण (सिद्धि प्राप्ति के उपाय), षट्कर्म प्रयोग तथा विपत्तिनिवारण के साधन आदि प्रायौगिक एवं व्यवहारिक क्रियाएं ही है, जिनका महाभारतकालीन हस्ताक्षर, भगवान श्रीकृष्ण द्वारा स्थापित, दिल्ली स्थित, कालकाजी, सनातन शक्तिपीठ कामाख्या, मध्यकालीन समावेशन खजुराहो स्थित पश्चिमी समूह मंदिर और वर्तमान में कामाख्या तंत्र का समसामयिक निरुपम, खजुराहो स्थित
।। ललिता दिव्याश्रम।। है।