तंत्राश्रम (काम-सिद्धि)
"वैदिक पोषण - नैसर्गिक जीवन"
(निरोगी तन - सकारात्मक मन)
।। ललिता दिव्याश्रम ।। का तीसरा अनूठा नवाचार है - "गौ-कृषि वाणिज्यम"। "ललिता कृषि विकास अनुसंधान केंद्र" में दशकों तक शोध कर गुरुदेव स्वामी सुमनानन्द नाथ (डॉ. सुमन कुमार दास) जी नें साधकों के लिए विशिष्टतम आध्यात्मिक पोषण प्रणाली विकसित की है, जहां संप्रदाय-सम्मत आध्यात्मिक आहार थाली (साधकों के स्थूल शरीर के वैदिक पोषण हेतु), मेवा सेवन का स्प्ताहार मंडल (सूक्ष्म शरीर का पोषण) तथा तीनों प्रकृति-प्रधान साधकों के कारण शरीर के नैसर्गिक पोषण हेतु प्रथमोत्तम "वात-पित्त-कफ-हर औषधीय वाटिका" के नवोन्मेषी वैदिक कृषि पद्यति - "गौ-कृषि वाणिज्यम" सच्चे साधकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। आश्रम का "गौ-कृषि वाणिज्यम" मॉडल न केवल ICAR बल्कि IIT जैसे संस्थानों से प्रमाणिक, अनुशंषित एवं प्रकाशित है।
सबको पता है कि रसायनिक खादों, बीजों व दवाइयों से उत्पन्न खाद्यान्न न तो साधकों को सिद्धि का मार्ग प्रशस्त कर सकती है और न ही भगवती के भोग-बलि-हवन आदि में प्रयुक्त हो सकती है।
इसी क्रम में आगे शोध करते हुए गुरुदेव ने साधकों के लिए अद्वितीय, अप्रतिम नवाचार - "मन्त्रयोगारण्य" को धरातल पर उतार दिया है, जहां देवता-विशिष्ट की साधना में सहायक उपयुक्त इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक फिल्ड का निर्माण करने वाले वृक्ष-वाटिका उपलब्ध है- जैसे "बगलामुखी" की साधना हेतु बगला-वाटिका (पर्सिम्मन जापानी फ्रूट, किवी, काली हल्दी)।
साधकों के तंत्र-तंत्रिका व मेटाबोलिज्म हेतु "देवारण्य" भी एक नया शोध है। साथ ही हमारा "वृक्षायुर्वेद" साधकों के रोगोपचार में अत्यधिक प्रभावी है। वहीं UV, IR, डिप्रेशन, रक्तचाप, मधुमेह आदि रोगों के लिए हमारे "गौ आश्रय स्थल" की अन्नाप्रथा गौवंशों को सहलाना, गले लगाना (Cow Hugging) ही काफी है।
परा-विद्या साधकों के लिए जहां "मन्त्रयोगारण्य" है, वहीं अपरा-विद्या साधना के लिए "प्रेतारण्य" है। समयाचार के लिए "उड्डीश तंत्र" (मंत्र+ वनस्पति) का विस्तार है तो वहीं कौलाचार के लिए "क्रियोड्डीश तंत्र", "षड - आम्नाय" सिद्धि के लिए "यंत्रोपचार" से "शाबर-तंत्र" तक गुरुदेव स्वामी सुमनानन्द नाथ जी की कृपा, शोध, प्रकाशन व अनुभव से संकल्प से सिद्धि तक साधना की पूरी श्रृंखला ।। ललिता दिव्याश्रम ।। में शिष्यों के लिए उपलब्ध है।
सारांश यह कि वृक्ष-वाटिका-वन के बिना साधना-सिद्धि असंभव है। पञ्च महाभूत का संधान वृक्ष के बिना अकल्पनीय है। पञ्च-तत्व के निर्माण का क्रम (आकाश-वायु-अग्नि-जल-पृथ्वी) और अग्निहोत्र (हूं-फट-वं-कौं-बीज) स्वाग्र एवं पराग्र त्रिकोण के समान है - दोनों संयुक्तावस्था में श्रृष्टि-क्रम (षट्भुज) का निर्माण करते हैं। अतः वृक्ष और यज्ञानुष्ठान एक दुसरे के पूरक हैं।
वृक्षाधिकारी नवग्रह - सूर्य (मोटे तने वाले वृक्ष), चन्द्रमा (दूध वाले और औषधीय वृक्ष), बुध (बिना फल वाले वृक्ष), गुरु (फलदार वृक्ष), शुक्र (फूल वाले वृक्ष), शनि (अप्रिय व् सूखे वृक्ष) तथा राहू-केतु (सभी झाड़ियाँ)।