।। चारों पुरुषार्थों की सिद्धि हेतु हमारे चार आश्रम ।।

।। ललिता दिव्याश्रम ।।

(धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष सिद्धाश्रम)

।। ललिता दिव्याश्रम ।।

।। ललिता दिव्याश्रम ।। के सस्थापक-पीठाधीश कौलाचार्य स्वामी सुमनानन्द नाथ (डॉ. सुमन कुमार दास) ने चारों पुरुषार्थों की सिद्धि व आत्मसाक्षात्कार जैसी जटिलतम अंतर्याग को वैदिक-वैज्ञानिक अनुकल्प की प्रामाणिक कसौटी पर कसते हुए अपने नवाचार से अतिसहज, सर्वसुलभ तथा सर्व-धर्म-सम्मत बना दिया है।

।। ललिता दिव्याश्रम ।। में नवोन्मेषी चार घटक हैं -

  • कौलाश्रम (मनोकामना मंदिर) - लोकोपचार - मन्नत विधान से धर्म की प्राप्ति।
  • मंत्राश्रम (४१-दिवसीय मंत्रयोगाचार) - मंत्रोपचार - मंत्रयोग साधना से धर्म और अर्थ की प्राप्ति।
  • तंत्राश्रम (गौ-कृषि वाणिज्यम) - तंत्रोपचार - वैदिक आहार से स्वास्थ्य लाभ, चुस्ती - स्फूर्ति और काम की प्राप्ति।
  • यंत्राश्रम (वैदिक फार्म-स्टे) - यंत्रोपचार - संपूर्ण आध्यात्मिक परिवेश - संप्रदाय-सम्मत आहार, उड्डीश-क्रियोड्डीश तंत्राचार, सकारात्मक विचार और कौलिक संस्कार के मध्य रहकर, साधकों को चाहिए कि मोक्ष की प्राप्ति का संधान करें।

"२१-४१-दिवसीय मन्त्रयोग" का वैज्ञानिक विश्लेष्ण (E=MC)

  • १. मंत्र-जाप से GABA रसायन में उत्तरोत्तर वृद्धि - अर्थात् E.
  • २. सन्निधान त्राटक PSM को गतिशील बनाकर, कुण्डलिनी शक्ति को Activate कर शक्तिपात को सुनिश्चित करता है - अर्थात् C2
  • ३. भैरव दीप-बलि मार्तण्ड-भैरव को साक्ष्य बनाने के अतिरिक्त द्रव्यमान का भी कार्य करता है - अर्थात् M

सन्निधान त्राटक से स्थूल-शरीर, मन्त्रयोग से सूक्ष्म-शरीर और भैरव दीप-बलि से कारण शरीर का क्रमशः संधान करते हुए साधक गुरुदेव की कृपा से शक्तिपात के माध्यम से संकल्प से सिद्धि को प्राप्त कर लेता है ।

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।। ललिता दिव्याश्रम ।।

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